आतंकवाद पर पाकिस्तान के अड़ियल रवैये, काला धन पर सरकारी कवायद और 2 जी घोटाले में हो रही हाई प्रोफाइल गिरफ्तारियों के बीच एक अच्छी खबर है कि मानसून ने केरल में दस्तक दे दी है। अरब सागर में बनेसाइक्लोन सिस्टम ने उसे सक्रिय कर दिया है और यह अभी केरल के अलावा तमिलनाडु, अंडमान, आंध्र प्रदेश मेें जलवे दिखा रहा है।
हालांकि उत्तर और मध्य भारत में छिटपुट बारिश को छोड़कर पारा अब भी चालीस डिग्री के आसपास है और उसके जल्दी नीचे उतरने की संभावना भी नहीं है। मगर अंधाधुंध शहरीकरण और औद्योगिकीकरण के चलते मौसम का चक्र जितनी तेजी से बदल रहा है, और प्रकृति के आगे हम जिस तरह से अपनी बाजी हारते जा रहे हैं, उसमें मानसून की आहट सुकून देने वाली है।
अमूमन भारत में मानसून पहली जून को अरब सागर के रास्ते से केरल के तटीय इलाकों में दस्तक देता है, और इस बार भी भारतीय मौसम विभाग ने इसके 31 मई तक वहां पहुंचने की भविष्यवाणी की थी, मगर वह तीन दिन पहले ही आ धमका। केरल पहुंचने के दस दिन बाद वह मुंबई पहुंचता है और 29 जून के आसपास दिल्ली। राहत की बात यह भी है कि मौसम विभाग ने इस साल मानसून के सामान्य रहने की उम्मीद जताई है। यदि उसके आंकड़ों पर गौर करें, तो जून से सितंबर के दौरान मानसून के चार महीनों में देश भर में औसतन 89 सेमी बारिश होती है।
अनुमान है कि इस बार बारिश पचास साल के औसत के 98 फीसदी के करीब हो सकती है। असल में भारत के लिए मानसून का खास महत्व है, क्योंकि देश की 70 फीसदी से ज्यादा खेती उसी पर निर्भर है, और जीडीपी का 17 फीसदी खेती पर। यानी अच्छी बारिश का मतलब है, अच्छी फसल और उसका मतलब है, अर्थव्यवस्था की मजबूती। अभी इसका महत्व इसलिए भी है, क्योंकि सरकार लाख कोशिशों के बावजूद महंगाई पर काबू नहीं पा सकी है। यह अब भी दो अंकों के करीब है। इस साल 8.5 फीसदी आर्थिक विकास दर का लक्ष्य देख रहे प्रधानमंत्री ने भी कहा है कि यदि मानसून सामान्य रहता है, तो महंगाई को काबू करने में मदद मिलेगी।
हमारे यहां धान, तिलहन, गन्ना और कपास जैसी फसलें तो तकरीबन बारिश के पानी पर ही निर्भर हैं, इसलिए मानसून को लेकर हमारी विवशता समझी जा सकती है। इससे हमारी अदूरदर्शिता भी पता चलती है, क्योंकि न तो हम बारिश के पानी के संरक्षण का पुख्ता इंतजाम कर सके हैं और न ही बदलते मौसम के अनुरूप कृषि क्षेत्र में पर्याप्त अनुसंधान। इस वक्त तो मानसून ही हमारा सहारा है।